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यथार्थ प्रवृत्ति का- लेख | भारमल गर्ग सांचौर (Yatharth Pravati Ka- lekh by Bharmal Garg)

 
Yatharth pravruti ka- lekh by Bharmal Garg.

 यथार्थ प्रवृत्ति का


बादल रुक जा क्यों घटा छाई है, परवाने घूम रहे हैं,

 क्यों छाया दिखाई है ।

नवोद्भिद् एहसास कृशानु रोहिताश्व दिखाई है, संकेत प्रपंच रंध्रा होंगी छद्मी आवेश नहीं बना विवेक रह जा चरित्रता के संग पहचान होगी तेरी भी जब होगा तेरा अचल रंग बिखरे नहीं तू ढंग तेरा होगा अग्निशिखा के सम्मान रुख बदल दे अपना भी स्वयं पर आजमा सम्मान।


दैवयोगा दैवयोगा हैं, परिणिता पार्थ को दिखाई है,

सुरभोग कलयुग में अनर्ह के साथ सजी है,

सहस्रार्जुन अब तिरस्कार हो रहा मेरा इस तमीचर ने विगत

अदक्ष वल्कफल कि भांति शब्दों में ढाल सजाई है।


सुखवनिता नहीं रह पाती सुजात बनकर,दर्प लोग अब मिथ्याभिमान आक्षेप लगाते हैं, पुनरावृत्ति अब कराने लगे धनाढ्य अनश्वर की प्रतीक्षा में अवबोधक का अनुदेशक अलग-अलग अन्तर्ध्यान भी अशुचि,अशिष्ट पराश्रित प्रज्ञाचक्षु के बनकर बैठे हैं यह बादल यह कैसी घटा छाई है।


कान्तार में उल्था निर्लज्ज की अब बूंद भी चिरंजीव का वर्णन बताई है, देखो सावन माह में सादर भी नई रंग लाई है, सौगात थी बाध्यकारी आदिमा विपत्ति व्योम से उतर कर आई है,अजिर भी अब मधुरासव ना बन बन पाया है।

यह मिथ्य विस्मय शुभाशीष फिर कैसे निकल आया है।


पौलोमी का प्रत्याख्यान ना बन हे मानुष उत्कण्ठित,

सप्तवर्णधनु आएगा देवेन्द्रपुरी आज ना कर द्वेष वाला काम, हुड़दंग होंगा दृष्टान्त बन जाएगा निमित्त रख तत्पर होंगा तेरा उत्सादन, उद्धार विद्यमान हैं प्रकृष्ट सादृश्य बनेगा 

प्रचण्ड तू अद्वितीय होंगा उत्क्रमण सौगात उत्तुंग शिखर धवन अंतरिक्ष में होगा तपन मनीषी जैसा समृद्धि तेरा होंगी।


विलास डूब रहा वैभव हो गया खाक, अवगुण निकाला में तो हिमबिन्दु अब अन्तर्ध्यान हो गया ! दुकूल हैं अर्कनन्दन ऐसे भी सरोरुह अब ताम्रपल्लव खिल गई कल्पद्रुम पे क्षीण से योगक्षेम दुःसाध्य का भी कृत्य वक्तव्य आक्षेप कलुषता अर्चि मृदुल मदनशलाका सा व्यय दिखाया है।


सुरम्य पखेरू घूम रहा सारंग अंश के पार,मौन झुंझलाहट हो रही सुपर्ण को आज! परोक्ष हो गई दशा भी त्रिपथगा के पास वृन्तपुष्प हो रहे थे गागर छलके का आज,जुगुप्सा करता बैठा रहा हिमगिरी के साथ,आचरण की ऊहापोह आरक्षी ना कर पाया आज ।


•••भारमल गर्ग सांचौर

इस लेख/ रचना के बारे में:

इस रचना में व्यक्तित्व को क्या आधार है उसके जीवन शैली किस प्रकार होनी चाहिए, आधुनिक और प्राचीन काल के बीच में जो वार्ताएं उजागर हुई थी उनकी व्यथा शब्दों की माला में समर्पित की गई है साथ ही आधुनिक काल के विषय में रचना का संदर्भ प्रेम से हैं और प्राचीन काल का संदर्भ विवेक से है।


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कवि परिचय

writer

भारमल गर्ग सांचौर

कवि और लेेेखक

जालोर,राजस्थान

भारमल जी राजस्थान से है और वे सामाजिक विचारक एवं श्रंगार रस के कवि है। और आप इस विशेषता को इनकी कविताओं और लेखों में बखूबी पायेंगे।

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