एक रोज़ मैं भी गुलाब हो जाऊँ ज़रा- कवि मिलन गौतम। हिन्दी सुविचार संग्रह
एक रोज़ मैं भी गुलाब हो जाऊँ ज़रा
तुम्हारी आँखों में काज़ल की तरह लगा रहूँ
मैं भी असबाब हो जाऊँ ज़रा
मुझे भी सवाब कमाना है
एक रोज़ मैं भी गुलाब हो जाऊँ ज़रा
मेरे घरौंदे में एक गुलाब खिला
मैंने कोमल स्पर्श की अनुभूति की
जैसे तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में हो
मैंने उस पल हर्ष की अनुभूति की
तुम्हारे तसव्वुर से चलकर हकीक़त के सफ़र का
मैं भी दोआब हो जाऊँ ज़रा
एक रोज़ मैं भी गुलाब हो जाऊँ ज़रा
मैं कोई सूखा हुआ सा वृक्ष तुम रिमझिम फ़ुहारों सी बारिश
बूँद बनकर गिरो मुझ पर और मुझे सदाबहार कर दो
मैं वो सूखी नदी जिसका कोई जलस्रोत नहीं
हिमनद की भाँति मुझे नीर-ओ-धार कर दो
मेरी चारों मौसम की कल्पना हो तुम तुम्हारा
मैं भी ख़्वाब हो जाऊँ ज़रा
एक रोज़ मैं भी गुलाब हो जाऊँ ज़रा
जिस प्रकार सीपी से मोती मिलता है
प्रिय तुम भी जत्न से मिली हो
तुम्हारी नायाबों से क्या उपमा करें
प्रिय तुम स्वयं एक रत्न से मिली हो
मैं कोई चाँद नहीं मगर हीरे सी चमक पाकर
मैं भी नायाब हो जाऊँ ज़रा
एक रोज़ मैं भी गुलाब हो जाऊँ ज़रा
मैं ढलता सूरज तुम उषा की पहली किरण
मैं अंधकार युक्त जगत तुम कोई जलता चराग़
मैं वह वाद्ययंत्र जिसमें कोई तान नहीं है
और तुम मधुर लय वाला कोई सुरमई राग़
तुम्हारा सानिध्य प्राप्त कर रौशन कोई
मैं भी रबाब हो जाऊँ ज़रा
एक रोज़ मैं भी गुलाब हो जाऊँ ज़रा
हर समस्या का समाधान तुम में
तुम जैसे स्वयं ख़ुदा हो शायद
असाधारण सौन्दर्य की मल्लिका
औरों से तुम जुदा हो शायद
तुम जब भी प्रश्न करो आज से कोई
मैं भी ज़बाब हो जाऊँ ज़रा
एक रोज़ मैं भी गुलाब हो जाऊँ ज़रा
तुम्हें आँखों से बस पढ़ता रहूँ मैं
तुम में ज्ञान का समंदर है
जितना गहराई में जाऊँ
उतना ही यह अंदर है
तुम्हारे पुस्तकालय में आज से कोई
मैं भी क़िताब हो जाऊँ ज़रा
एक रोज़ मैं भी गुलाब हो जाऊँ ज़रा
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