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मन की विवेचना-कविता | भारमल गर्ग सांचौर (Man ki Vivechna-poem by Bharmal Garg)

Man ki vivechna| Bharmal Garg

 मन की विवेचना


अनुराग अनुभूति मिला आज आनुषंगिक, निरूपम अद्वितीय शून्यता हुआ! देख अपकर्ष अपरिहार्य के साथ। यदा-कदा अनुकंपा, अनुकृति अहितकर असमयोचित इंद्रियबोध रहित! अक्षम अनभिज्ञ बता रहे पारायण ज्ञान। अदायगी अविराम ले रहा तंद्रालु बन गया में, क्लेश अग्रवर्ती पूर्वाभास से अचवना कर रहा में, अचल मन पर अज्ञ तन अशिष्ट बेतहाशा बढ़ रहा में। मीठा कथन सबसे बड़ा , होता भेषज प्रतीक हरती विपदा सब जहाँ, मनुज ये तू है तीक्ष्ण ! मुकुर निरर्थक बन जा पहली बार, वृत्ति की मुक्ति अन्वेषण सुरभोग सुधा बन बैठा में । सिमरसी वैराग्य सर्वस्व अर्पण सारथी मन टूट रहा अपरिग्रह कर गया में! पुलकित आलोक अत्युच्च उत्सर्ग अनुग्रह आज, स्मरणीय दायित्व निर्वहन नवीन नवोन्मेष के संग। बड़भागी पुरईन बोरयौ परागी प्रीति में, बिहसी कालबस मंद करनी काज, विलम्ब विद्यमान जनावहीं आज घोरा मोहि लागे छमिअ अबूझ मन को मोह से आज।

हियो गुन गाथा छोड़ देता आज, तनुता ढरी सांस समीर के संग! झीनी मगन आनी जगन पायनी मघुराई, मंजु सुहाई हुलसै देख मुखचंद जुन्हाई किनित आज। कंजकली सुधा फरसबंद शोभत आज, देख देख कर रही शांता सारे काज, मधुप घनी अनंत नीलिमा व्यंग्य कविता ना हुई आज देख-देख प्रवंचना उज्जल अनुरूप सटीक उपाय आज। उन्मन अंत ना हो, अट उर पुष्प शोभाश्री नादानी की मुक्ति अन्वेषण, जलजात परस पंचामृत तरमन "गर्ग" मानुष आज शांत क्षण चिरप्रवास हुई अरुणा आज! कोटि हत साहस पथ संचलन मन व्याकुल, इस प्रीति के क्या- क्या बताया भान नहीं दिखाता आज। नीरवता मेख रोष रंज सदैव, विकृत रूप में "गर्ग" देख रहा गवेषणा करता आज! मनोवृति सघन स्पंदन निपुणता जीवन शैली विवेशना की बात, घुटिक कुत्सित शांत क्षण भर सदैव तत्पर रहता मलयज, सृष्टा देखो रीता चर्मिका इस प्रीति के तात्विक वशीभूत प्रेम से व्योम मन से व्योम चेतन मन का हिस्सा बन प्रेम जब किच्छा बन बैठा आज में।


कवि : भारमल गर्ग सांचौर


इस रचना के बारे में:

"मन की विवेचना" (गर्ग) के, जीवन निर्माण का किच्छा है! हर शब्द आसू का हिस्सा है, भावुकता अनंत, काल अंगूर और लता की तरह माधुर्य क्षण अतीत का पहलू है। जब व्यक्ति प्रेम स्नेह में छीन लाता है तब कहानी नया मोड़ दे देती है। सामने वाला व्यक्ति प्रेम का प्रत्यक क्षण नकारता हुए आगे बढ़ जाता है, तब आसू केवल शक्त देते हैं। कवि का प्रेम ऋण के सम्मान हो गया है, उन बातों को मोह से अधिक अतिशय अत्यधिक महत्व होता है उन समय को संगीत में सरगम पवित्र परंतु शिखा की तरह जटिल प्रक्रिया गुजरना पड़ा रहा है, कवि के अनुसार हर शब्द आसू की तरह माधुर्य कविता बनाते हैं। यथार्थ- जब आप किसी से सच्चाई बताएं और उसमे सजगता ना बरतें तब आप सोचे कि अन्वेषण जलजात स्वयं हो रहे हैं।

कवि परिचय

writer

भारमल गर्ग सांचौर

कवि और लेेेखक

जालोर,राजस्थान

भारमल जी राजस्थान से है और वे सामाजिक विचारक एवं श्रंगार रस के कवि है। और आप इस विशेषता को इनकी कविताओं और लेखों में बखूबी पायेंगे।

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