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वाह रे राजनीति- कविता । इल्हाम (Vah Re Rajneeti poem by ilham [U.P.])


Kavita Vah re Rajniti by ilham_©


" राजनीति " 


वाह रे राजनीति क्या ख़ूब तेरी संस्कृति है,

ग़रीबों की थाली में परोसा है ग़रीबी और

अमीरों की थाली में परोसा है अमीरी,


कहनें को तू कहता है सब इक़ समान हैं,

पर देख़ली तेरी हमनें दरियादिली,


अमीरों को बिठाया ऊँचे सिंहासन पर,

ग़रीबों को सौंप दिया ज़मीनी,


वाह रे राजनीति क्या ख़ूब तेरी संस्कृति है,

पेट तो भर रहा है तू उन सबका ऐ राजतंत्र,

क़हीं दौड़ रही है ख़ुशियों की लहर तो

क़हीं है बस छाई दुख़द ख़बर,


शिक्षा को बढ़ावा मिलता है उधर भी और इधर भी,

फ़र्क़ इतना है बस वहाँ मोल की शिक्षा है और

यहाँ शिक्षा है बस ग़ुर्बत की...


 कवयित्री- ©_इल्हाम

(उत्तर प्रदेश)


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