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छुट्टी के दिन- कविता (Chhutti ke din -Hindi poem)

Chhutti ke din- poem


छुट्टी के दिन

खुशियाँ लेकर आ जाते हैं, छुट्टी के दिन।
क्या क्या खेल खिला जाते हैं,छुट्टी के दिन। 
मम्मी डॉट लगाती रहती,
पापा अकसर आँख दिखाते। 
कितनी गरमी! लू चलती है।
बाहर जाकर खेल न पाते।

बोर हुए झुंझला जाते हैं, छुट्टी के दिन ।
क्या-क्या खेल खिला जाते हैं, छुट्टी के दिन।
 मिटू माँगे गेंद और बल्ला,

मिट्टी चाहे कहो कहानी। 
घर भर को महंगी पड़ जाती,
दो बच्चों की माँग निभाना।

घरवाले घबरा जाते हैं,छुट्टी के दिन।
क्या-क्या खेल खिला जाते हैं, छुट्टी के दिन।
पढ़ना लिखना, लिखना पढ़ना, होमवर्क की आफत भारी।

लो स्कूल घुस गया घर में,
भोले बच्चों की लाचारी।
दासी-दास बना जाते हैं, छुट्टी के दिन।
 क्या-क्या खेल खिला जाते हैं, छुट्टी के दिन।

मेहमानों के बच्चे आते,
लेकर अपने सपन-सलोने।
बचा न पाते खेल-खजाने,
फटी किताबें, खत्म रिवलौने। 
गजब मुसीबत ढा जाते हैं, छुट्टी के दिन।
क्या-क्या खेल खिला जाते हैं, छुट्टी के दिन।

हरी सब्जियाँ, पीछे दौड़ी,खरबूजे, तरबूजे मचले।
सेब, संतरे गायब हो गए, 
आम और लीची आगे निकले।
 शरबत सुख बरसा जाते हैं, छुट्टी के दिन।
क्या-क्या खेल खिला जाते हैं, छुट्टी के दिन।

 पैसे अगर पास में हों, या घर से मिल जाए मंजूरी। 
पर्वत-पर्वत सैर सपाटा,पहुँचे नैनीताल, मसूरी।
बर्फ-बर्फ बरसा जाते हैं, छुट्टी के दिन।
क्या-क्या खेल खिला जाते हैं, छुट्टी के दिन।

बदली बरसी, मौसम बदला, बहते अब समीर के झोंके।
गली-गली में खेल गुजते, मिले मौज मस्ती के मौके।
आज़ादी दिलवा जाते हैं, छुट्टी के दिन ।
 क्या-क्या खेल खिला जाते हैं, छुट्टी के दिन।

कवि- अज्ञात

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