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गौरैया पर खतरा-कुछ हटकर (Goraiye Par Khatra)

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गौरैया पर खतरा 

गौरैया एक चिड़िया है। जो हल्के भूरे और सफ़ेद रंग की होती है।

तो आप सभी ने यह गाना तो जरूर सुना होगा "चूँ चूँ करती आई चिड़िया, दाल का दाना लाई चिड़िया...।" यही चिड़िया अब दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में आ गई है। पहले सुबह-सुबह सूरज के उगते ही चिड़ियों का कलरव प्रकृति में जोश जगाता था। बच्चे सर्वप्रथम चिड़िया से ही परिचित होते थे क्योंकि घर-आँगन में फुदकना, परिवार के साथ रहना गौरैया को प्रिय था। परंतु आज जंगलों, खेतों, बगीचों में फुदक-फुदककर उड़ने वाली नन्ही गौरैया धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं।

जैसा की मैं पहले भी बता चुका हूँ कि गौरैया एक छोटी सी चिड़िया है जो हल्के भूरे और सफ़ेद रंग की होती है। नर गौरैया की गरदन पर एक काला धब्बा होता है। इसे अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। जैसे पंजाब में चिड़ी, उर्दू में चिरया, सिंधी में झिरकी, जम्मू-कश्मीर में चेर, पश्चिम बंगाल में चराई पाखी, तेलुगु में पिछुका, कन्नड़ में गुबाच्ची, तमिलनाडु और केरल में कुरुवी। 

पिछले कुछ सालों में गौरैया की संख्या में कमी आई है। इसका मुख्य कारण आधुनिकीकरण के साथ ही साथ मानव की लापरवाही को माना जा सकता है। शहरीकरण व जनसंख्या के विस्फ़ोट के फलस्वरूप ज़मीन की कमी ने बाग-बगीचे उजाड़ दिए। पक्षियों के रैन बसेरे, पेड़ों का कटाव, मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगें इस प्रजाति की विलुप्ति का कारण बनी हैं। आज ऊँची-ऊँची इमारतों में घरों का निर्माण इस प्रकार हो रहा है कि छज्जे, कोने, बरामदे आदि की जगह ही खत्म कर दी गई हैं। एयरकंडीशन ने रोशनदानों को घरों से गायब कर दिया है। पेट्रोल से निकलने वाली मेथिल नाइट्रेट छोटे कीड़ों को विनष्ट कर देती है जो इन चिड़ियों के चूजों के लिए खाद्य पदार्थ का काम करते हैं। गौरैया एक सामाजिक पक्षी है जो ज्यादातर झुंड में उड़ती है। इनका झुंड डेढ़ से दो मील की दूरी तय करता है। इनका मुख्य आहार ज़मीन पर बिखरे अनाज के दाने और कीड़े-मकोड़े हैं जिस कारण इसे 'किसानों का मित्र' भी कहा जाता है।

यहाँ तक कि आज गौरैया को बचाने के लिए दिल्ली सरकार ने इसे राजपक्षी घोषित किया है। हमें भी गौरैया के लिए घरों की छत पर दाना-पानी की व्यवस्था करनी होगी और कीटनाशकों का प्रयोग भी नहीं करना होगा। साथ ही घरों में बागवानी को बढ़ावा देते हुए प्रदूषण को रोकना होगा तभी हम गौरैया को बचा पाएँगे और भावी पीढ़ी को गौरैया से मिला पाएँगे।

और ऐसे ही छोटे छोटे कदमों से हम गौरैया को बचा सकते है।


लेखक- अज्ञात

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