भक्ति क्या हैं? What does Bhakti mean?
भक्ति का सही अर्थ
भक्ति का पथ और ज्ञान का पथ पहुँचते एक ही स्थान पर हैं, परंतु दोनों के माध्यमों में गंभीर भिन्नता है। ज्ञानी जो कदम अपनी यात्रा अंतिम चरण पर उठाता है, भक्त वही कदम अपनी यात्रा के प्रथम चरण में उठा लेता है। भक्ति का अर्थ समर्पण से है। भक्ति का अर्थ स्वयं को परमात्मा के हाथों में बेशर्त सौंप देने से है। ज्ञानी भी अंत में इसी निष्कर्ष को उपलब्ध होता है कि कितना भी आगे बढ़ जाऊँ, पर तब भी मेरे आगे अनेकों पायदान पहले से खड़े हैं। तब उसे भी 'नेति नेति' करके, ज्ञान की उस अस्मिता को त्यागकर अपने अज्ञान को स्वीकारना पड़ता है।
कथा है कि एक ज्ञानी व्यक्ति एक भक्त से मिलने गया व उससे बोला "मैंने सारे ग्रंथ पढ़ लिए, सारे शास्त्र मुझे कंठस्थ हैं, फिर परमात्मा का अनुभव अब तक क्यों नहीं कर पाया हूँ?" भक्त ने उसके प्रश्न का उत्तर न देकर, उसे एक जल से भरा पात्र दिया व बोला- "आप जल ग्रहण करें, फिर आपकी जिज्ञासा का समाधान करता हूँ।" ऐसा कहते हुए उसने उसके जल से भरे पात्र में और जल डालना प्रारंभ कर दिया। ज्ञानी यह देखकर चिल्लाते हुए बोला- "अरे ! भरे पात्र में जल डालने से सारा जल तो बाहर गिर जाएगा, पात्र में क्या जाएगा?" भक्त बोला— "बंधु ! आप भी तो अपने पांडित्य के अभिमान से लबालब भरे ही हैं, स्वयं को खाली करो और अंदर परमात्मा के लिए स्थान बनाओ, तभी तो परमात्मा का अनुभव मिल सकेगा।"
भक्ति का अर्थ स्वयं को परमात्मा की उपस्थिति से भर लेना है। जब हमारे प्रत्येक श्वास पर परमात्मा के ही हस्ताक्षर हो जाते हैं, हमारे व्यक्तित्व का प्रत्येक घटक परमात्मा में ही रूपांतरित ही जाता है तब हममें और परमात्मा में कोई भेद नहीं रह जाता है। 'मैं' के मिटने पर भगवान की उपस्थिति का अनुभव होता है । भक्त इस कदम को पहले चरण पर ही लेता है और ज्ञानी, सब किताबों में भटकने के बाद । सर्वस्व का समर्पण ही भक्ति का पथ है।
लेख स्त्रोत: युग निर्माण योजना से।
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