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बिसरे किसी सफ़र के- कविता। डॉ.सौरभ त्रिपाठी (Bisre kisi safar ke- poem by Dr. Saurabh Tripathi)

 

Bisre kisi safar ke

बिसरे किसी सफ़र के

 तुम छूटे हुए मिले,

आधी नींदों के ख़्वाब कई 

फिर टूटे हुए मिले । 


परछाईं सी बीते कल की 

ठहरी आशा बस दो पल की,

फिर बादल वादी पार चले

 बारिश की बात बिसार चले,

 गाँव मेरे अरमानों के,

 सब लूटे हुए मिले। 

आधी नींदों के ख़्वाब कई

 फिर टूटे हुए मिले।


 मैं किसी इम्तहाँ से डर कर,

जी रहा नतीजों में छुप कर।

 शायद हम राह भटक जाएं,

या चलते चलते थक जाएं।

उलझे रिश्तों के बीच कहीं, 

हम रूठे हुए मिले।

आधी नींदों के ख़्वाब कई, 

फिर टूटे हुए मिले। 


अवशेष नहीं कुछ भी लब पर, 

क्या गीत कहें छूटे अवसर। 

इक चाह रिक्त अपनेपन की, 

धुंधली तस्वीरें बचपन की। 

मुरझाए फूलों से अतीत, 

सब सूखे हुए मिले। 

आधी नींदों के ख़्वाब कई

फिर टूटे हुए मिले।


🌻लेखक/कवि : डॉ. सौरभ  त्रिपाठी

कवि परिचय

writer

डॉ.सौरभ त्रिपाठी

कवि

हरिद्वार,उत्तराखंड

डॉ. सौरभ त्रिपाठी पेशे से एक चिकित्सक हैं। वर्तमान में वह हरिद्वार उत्तराखंड में वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ के पद पर कार्यरत हैं।

उनकी कविताओं में प्रेम, वेदना, आशा और प्रकृति के विविध भावों की अप्रतिम अनुभूति होती है।

उनकी पहली काव्य संकलन पुस्तक "नग्मों की वादी" हाल ही में प्रकाशित हुई है।

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